Sunday, August 21, 2011

कुरुक्षेत्र के मैदान में

श्री कृष्ण के विराट व्यक्तित्व कुरुक्षेत्र के मैदान में प्रकट होता है। कृष्ण ने प्रयत्न किया था कि युद्ध न हो। फिर युद्ध स्वीकार किया और युद्ध से पूर्व एक और निर्णय लिया- कि मेरी सेना दुर्योधन के साथ लड़ेगी। मैं अकेला पांडवों की ओर रहूँगा। ऐसा विरोधी निर्णय कृष्ण ही ले सकते थे। इसी से कहा जाता है कि कृष्ण अनुकरणीय नहीं, चिंतनीय हैं। उनके हर कार्य के पीछे गहरा प्रतीकार्थ है, जो सामान्य आदमी की समझ से बाहर है।

संसार को अनुशासित करने वाले
वृंदावन में कृष्ण ने जैसा नृत्य-संगीत भरा जीवन जिया, उस उत्सवपरक उल्लास भरे बचपन के ठीक विपरीत वही कृष्ण, कुरुक्षेत्र में अर्जुन से यह क्यों कर कह सकें-

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