Sunday, August 21, 2011

जन्माष्टमी मनाने का समय निर्धारण

सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार की है–

बिना रोहिणी नक्षत्र की तथा
रोहिणी नक्षत्र वाली।
निर्णयामृत  में 18 प्रकार हैं, जिनमें 8 शुद्धा तिथियाँ, 8 विद्धा तथा अन्य 2 हैं (जिनमें एक अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र वाली तथा दूसरी रोहिणी से युक्त नवमी, बुध या मंगल को)। *तिथितत्व से संक्षिप्त निर्णय इस प्रकार हैं– 'यदि 'जयन्ती' (रोहिणीयुक्त अष्टमी) एक दिन वाली है, तो उसी दिन उपवास करना चाहिए, यदि जयन्ती न हो तो रोहिणी युक्त अष्टमी को होना चाहिए, यदि रोहिणी से युक्त दो दिन हों तो उपवास दूसरे दिन ही किया जाता है, यदि रोहिणी नक्षत्र न हो तो उपवास अर्धरात्रि में अवस्थित अष्टमी को होना चाहिए या यदि अष्टमी अर्धरात्रि में दो दिन वाली हो या यदि वह अर्धरात्रि में न हो तो उपवास दूसरे दिन किया जाना चाहिए। यदि जयन्ती बुध या मंगल को हो तो उपवास महापुण्यकारी होता है और करोड़ों व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है जो व्यक्ति बुध या मंगल से युक्त जयन्ती पर उपवास करता है, वह जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है।'
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य एवं विधियाँ
मुख्य लेख: कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य है उपवास, कृष्ण पूजा, जागरण (रात का जागरण, स्तोत्र पाठ एवं कृष्ण जीवन सम्बन्धी कथाएँ सुनना) एवं पारण करना।

तिथितत्व  , समयमयूख  , कालतत्वविवेक , व्रतराज , धर्मसिन्धु   ने भविष्योत्तर पुराण  के आधार पर जन्माष्टमी व्रत विधि पर लम्बे-लम्बे विवेचन उपस्थित किये हैं।

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