Sunday, August 21, 2011

स्तुति:-

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम । नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम । सर्वांगे हरिचन्दनम सुरलितम, कंठे च मुक्तावलि । गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ॥यदि संभव हो तो मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।

तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव सम्पादित करे तदोपरांत श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करे |

निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।'

उसके पश्चात सभी परिजनों में प्रसाद वितरण कर सपरिवार अन्न भोजन ग्रहण करे और यदि संभव हो तो रात्रि जागरण करना विशेष लाभ प्रद सिद्ध होता है जो किसी भी जीव की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ति करता है |इसके आलावा कृष्ण जन्म के समय "राम चरित मानस" के"बालकांड" में "रामजन्म प्रसंग" का पाठ आथवा "विष्णु सहस्त्रनाम" , "पुरुष सूक्त" का पाठ भी सर्वस्य सिद्दी व सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला है |

आज के दिन "संतान गोपाल मंत्र", के जाप व "हरिवंश पुराण", "गीता" के पाठ का भी बड़ा ही महत्व्य है |यह तिथि तंत्र साधको के लिए भी बहु प्रतीक्षित होती है, इस तिथि में "सम्मोहन" के प्रयोग सबसे ज्यादा सिद्ध किये जाते है | यदि कोई सगा सम्बन्धी रूठ जाये, नाराज़ हो जाये, सम्बन्ध विच्छेद हो जाये,घर से भाग जाये, खो जाये तो इस दिन उन्हें वापिस बुलाने का प्रयोग अथवा बिगड़े संबंधो को मधुर करने का प्रयोग भी खूब किया जाता है |

|| श्री कृष्ण शरणं मम ||

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