Sunday, August 21, 2011

रात्रि जागरण और प्रात: पूजन

व्रती को रात्रि भर कृष्ण की प्रशंसा के स्त्रोतों, पौराणिक कथाओं, गानों एवं नृत्यों में संलग्न रहना चाहिए। दूसरे दिन प्रात: काल के कृत्यों के सम्पादन के उपरान्त, कृष्ण प्रतिमा का पूजन करना चाहिए, ब्राह्मणों को भोजन देना चाहिए, सोना, गौ, वस्त्रों का दान, 'मुझ पर कृष्ण प्रसन्न हों' शब्दों के साथ करना चाहिए। उसे

यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्।
भौमस्य ब्रह्मणों गुप्त्यै तस्मै ब्रह्मात्मने नम:।।
सुजन्म-वासुदेवाय गोब्राह्मणहिताय च।
शान्तिरस्तु शिव चास्तु॥'

का पाठ करना चाहिए तथा कृष्ण प्रतिमा किसी ब्राह्मण को दे देनी चाहिए और पारण करने के उपरान्त व्रत को समाप्त करना चाहिए  ।

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